आज का दिन मेरे लिए आम दिनों जैसा ही रहा. ऑफिस का काम थोडा जल्दी ख़तम हो गया था तो घर भी जल्दी आना हुआ. थोडा फ्रेश होके मोबाएल देखा तो काफी सारे मित्रोने व्हाटसप और फेसबुक के माध्यम से दशेहरा की बधाईया भेजी थी. मेसेजिस पढ़ते पढ़ते मनमे काफी सारे ख्याल और सवाल उठने लगे. सोचा की क्योना वो सारी बाते आप लोगोके साथ शेयर की जाये.
ये तो हरकोई जनता है की दशहरा का त्यौहार अहंकार और असत्य जैसी बुराईयों की हार का प्रतिक है. प्रेम और सत्य का ये विजयोत्सव भारत में करोडो लोग सालों से मना रहे है. और शायद आने वाले काफी सालों तक मानते रहेंगे. पर असली सवाल ये है की..
- इस उत्सव को मानाने के पीछे का उद्देश्य क्या है?
- क्यों हमारे आध्यात्मिक जगत के गुरुओ ने इस रावण वध की घटना को उत्सव के रूप में समाजमे फैलाया?
- हमारे आनंद और उत्सव का कारण कीसी व्यक्ति का वध है या व्यक्तित्व का वध है?
- क्या हमने कभी अपने भीतर रहे अहंकार, असत्य, अज्ञान और डर रूपी अंधकारमय व्यक्तित्व को स्वीकारने और सुधार ने का साहस किया?
- क्या हम इस त्यौहार को कही अन्धो के भांति सालों की आदतों से वश हो कर सिर्फ दोहराए तो नहीं जा रहे है?
हो सकता है की मेरे ये सवाल कीसी मित्र को पसंद ना आये. लेकिन आज में किसी की पसंद या ना पसंद के हिसाब से नहीं बल्कि वर्तमान समाज में फैली हुई कुछ ऐसी सच्चाईओ से आप को रूबरू करवाना चाहता हु की जिससे शायद कीसी की आत्मा जाग जाये और वो एस उत्सव के पीछे का उदेश्य पूर्ण करने में सफल हो जाये.
पिछले 20 सालों से में हिप्नोथेरापी और सायकोलोजी के व्यवसाय से जुड़ा हुआ हु. इस दौरान हजारों लोगों के मन को पढने का मोका मिला. लोगों की मनोव्यथा, पारिवारिक समस्याये, व्यवसाईक समस्याये और अध्यात्मिक उल्जनो को सुना, समजा और दूर किया. इतने अनुभवों के बाद आज में आत्मसात कर रहा हूँ की ज्यादातर समस्याये कही बहार या कीसी बाहरी व्यक्ति में नहीं है, बल्कि वो हमारे भीतर हमारे व्यक्तित्व में है.
अक्सर लोग अपने भीतर रहे डर,घ्रिना, इर्ष्या, अहंकार आदि दुर्भावनाओ को दबाने और छुपाने के प्रयास में लगे रहते है. फिर यही बुरी भावनाए आगे बढ़ कर व्यक्ति की आदत..स्वभाव..और व्यक्तित्व बन जाता है. और वही व्यक्तित्व उसके वाणी , वर्तन और व्यवहार में छलकने लगता है. धीरे धीरे समाज में यही उसकी पहचान और परिणाम बन जाता है. जबकी जरुरत थी की व्यक्ति अपने भीतर पलती उन बिज रूपी बुरी भावनाओ के प्रति जाग्रत हो, उससे पहले की वो कोई महाकाय वृक्ष बन जाये. जाग्रत व्यक्ति ही अपनी बुरी भावनाओ को स्वीकार करके उसे सुधारने का साहस कर सकता है.
समाज में अक्सर ये देखने को मिलता है की हम जिसे बेहद चाहते है उसकी गलत आदतो और स्वभावो को भी हम छुपाने का प्रयास करते है. लेकिन हम नहीं जानते के अनजाने में हम अपने ही प्रिय व्यक्ति के जीवन को एक ऐसी गहरी और अँधेरी खाई में धक्का दे रहे है की फिर उसका बहार निकलना ना मुमकिंसा हो जाता है. जबकि यहा हमारा काम एक शुभचिंतक के तौर पर अपना निजी स्वार्थ ,डर और भावुकता को छोड़ कर उस प्रिय व्यक्ति को खुद की बुरी आदतों और स्वभावो से जाग्रत करवाना था.
जिस भांति कीसी कम्पुटर में अगर वायरस है तो उस वायरस के प्रति आंख बन्ध कर देने से या उसको स्वीकार नहीं करने से हमे समाधान नहीं मिलता है. और अगर ऐसा किया तो हो सकता है की हम बाकि बचे महत्वपूर्ण डेटा को भी गवादे. जरुरत है हमें वायरस (दुर्भावो) के प्रति सावधान होके उसको दूर करने की, ना की उसको अनदेखा करके महत्वपूर्ण डेटा (जीवन) को नष्ट करने की.
“शायद हमारे अध्यात्मिक गुरुजन इन सभी बातों को भली भांति जानते थे. वो जानते थे की मनोजगत और उसके भीतर रही भावउर्जा ही मनुष्य के विकास और विनाश का कारण होती है. हमारे भीतर शुद्ध भावनाओ का सर्जन हो और अशुद्ध भावनाओ का विसर्जन हो इसी उदेश्य से उन्होंने दशहरा जैसा उत्सव मानाने की प्रथा समाज में विकसित की होगी.”
अब ये हमारे हाथ में है की हम उस उदेश्य को आत्मसात करके सफल बनाये या पुरानी आदत वश सिर्फ प्रथा का अनुकरण करके उस उदेश्य को ख़तम करदे.
सही विश्लेषण है।
पर अब कहानियों के माध्यम से दिया हुआ ज्ञान लोगों के समझ के परे है। वे अंधत्व में डूबे हुए हैं, वे इस मिथक को इतिहास मानते हैं व धार्मिक व राजनैतिक व्यवसायीओं द्वारा भेड़ बकरियों के भांति हाँकें जा रहें हैं।
जमाना गया पर ऐंठन छोड़ गया ज्ञान बाँटने के गलत तरीके का।
अच्छा विश्लेषण सर !…
रावण ज्ञानी था लेकिन उसके विचारों पर भावनाओं ने कब्जा कर दिया था , जब भावनाएं प्रबल होती है तब विचार या ज्ञान का प्रभाव खत्म हो जाता है , अपने हो…… या बहन के ……अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए अपना परिवार एवं राज्य उस ने दांव पर लगाया.
आज के परिपेक्ष में सभी तनावों का कारण विचार और भावनाओं का असंतुलन है ……
सिर्फ ज्ञान होना जरूरी नहीं ……… जरुरी है उसका अम्मल (Apply) सही ढंग से कर सकते हो या नहीं ?
यह मूलभूत प्रश्न है ……….
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